Qalb E Aashiq Huva Para Para

Qalb E Aashiq Huva Para Para

ALWADA ALWADA MAHE RAMAZAN NAAT LYRICS
Qalb-E-Aashiq Hain Ab Para Para,
Alwada Alwada Mahe Ramazan.

Tere Aaney Se Dil Khush Huwa Tha,
Aur Zoak-E-Ibadat Badha Tha,
Aahh Ab Dil Pe Hain Ghum Ka Galba,
Alwada Alwada Mahe-E-Ramazan.

Naikiyan Kuch Na Hum Kar Sakain Hain,
Aah Issiya He Main Din Katain Hain,
Haaye Gaflat Main Tujh Ko Guzara,
Alwada Alwada Mah-E-Ramzan.

Koi Husn-E-Amal Na Kar Sakaa Hoo,
Chand Ansoo Nazar Kar Raha Hoo,
Yehi Hai Mera Kul Asasaaa,
Alwada Alwada Mah-E-Ramzan.

Jub Guzar Jayenge Mah Giyara,
Teri Aamad Ka Aamad Ka Phir Shoor Hoga,
Kiya Meri Zindagi Ka Bharosa,
Alwada Alwada Mah-E-Ramzan.

Bazm Iftar Sajti Thi Thi Kaisi,
Khood Sehri Ki Ronak Bhi Hotee,
Sub Sama Hogaya Suna Suna,
Alwada Alwada Mah-E-Ramzan.

Yaad Ramzan Ki Tarpa Rahee Hai,
Aansoo Ki Jarhee Lag Gayee Hain,
Keh Raha Hai Har Aik Qatra,
Alwada Alwada Mah-E-Ramzan.

Tere Diwane Sub Ke Sub Ro Rahe Hain,
Muztarib Sub Ke Sub Ho Rahe Hain,
Kaun Dega Inhe Ab Dilasa,
Alwada Alwada Mahe Ramzan.

Sag-E-ATTAR, Badkar, Qahil,
Rah Gaya Yeh Ibadat Se Gaafil,
Is Se Khush Hoke Hona Rawana, Hum Sub Se Khush Hoke Hona Rawana
ALWADA ALWADA MAHE-E-RAMZAN,
ALWADA ALWADA MAHE-E-RAMZAN.

Aae Musalman Tho Zinda Rahoge,
Is Mahiney Ko Phir Dekh Looge,
Kiya Teri Zindagi Ka Bharoosaaa,
Alwada Alwada Mah-E-Ramzan.

Saal-E-Ainda Shah-E-Haram Tum,
Karna Hum Sub Par Yeh Karam Tum,
Tum Madiney Mai Ramadan Dikhana,
Tum Madiney Mai Ramadan Dikhana,
Tum Madiney Mai Ramadan Dikhana,(AAMEEN)
Alwada Alwada Mah-E-Ramadan.

Waasta Tujh Ko Meethey Nabi Ka,
Hashr Mai Humko Mat Bhool Jana,
Roz-E-Mehshar Humain Bukhshwana,
Roz-E-Mehshar Humain Bukhshwana,(Aameen)
Alwada Alwada Mah-E-Ramadan.

Tum Pe Lakhoo Salam Mah-E-Ramzan,
Tum Pe Lakhoo Salam Mah-E-Gufran,
Jao Hafiz Khuda Ab Tumhara,
Alwada Alwada Mah-E-Ramadan.
ALWADA ALWADA MAHE-E-RAMZAN,
ALWADA ALWADA MAHE-E-RAMZAN

Hindi Lyrics

क़ल्बे आशिक़ है अब पारा पारा
अलविदा अलविदा माहे रमज़ान

तेरे आने से दिल खुश हुआ था
और ज़ौक़ै इबादत बढ़ा था
आह! अब दिल पे है ग़म का ग़लबा
अलविदा अलविदा माहे रमज़ान

मस्जिदों में बहार आ गई थी
ज़ौक दर ज़ौक आते नमाज़ी
हो गया कम नमाज़ों का जज़्बा
अलविदा अलविदा माहे रमज़ान

बज़्मे इफ़्तार सजती थी कैसी
खूब सहरी की रौनक भी होती
सब समां हो गया सूना सूना
अलविदा अलविदा माहे रमज़ान

तेरे दीवाने अब रो रहे हैं
मुज़्तरिब सब के सब हो रहे हैं
हाए अब वक़्ते रुखसत है आया
अलविदा अलविदा माहे रमज़ान

तेरा ग़म सब को तड़पा रहा है
आतिशे शौक़ भड़का रहा है
फट रहा है तेरे ग़म में सीना
अलविदा अलविदा माहे रमज़ान

याद रमज़ान की तड़पा रही है
आंसुओं की झड़ी लग गयी है
कह रहा है ये हर एक क़तरा
अलविदा अलविदा माहे रमज़ान

दिल के टुकड़े हुए जा रहे हैं
तेरे आशिक़ मरे जा रहे हैं
रो रो कहता है हर एक बेचारा
अलविदा अलविदा माहे रमज़ान

तुम पे लाखों सलाम माहे रमज़ान
तुम पे लाखों सलाम माहे गुफराँ
जाओ हाफ़िज़ ख़ुदा अब तुम्हारा
अलविदा अलविदा माहे रमज़ान

नेकियां कुछ न हम कर सके हैं
आह! इसयाँ में ही दिन कटे हैं
हाए! ग़फ़लत में तुझको गुज़ारा
अलविदा अलविदा माहे रमज़ान

वास्ता तुझको प्यारे नबी का
हश्र में हमको मत भूल जाना
रोज़े महशर हमें बख्शवाना
अलविदा अलविदा माहे रमज़ान

जब गुज़र जायेंगे माह ग्यारह
तेरी आमद का फिर शोर होगा
क्या मेरी ज़िन्दगी का भरोसा
अलविदा अलविदा माहे रमज़ान

माहे रमज़ान की रंगीन हवाओं
अब्रे रहमत से ममलू फ़ज़ाओं
लो सलाम आखिरी अब हमारा
अलविदा अलविदा माहे रमज़ान

कुछ न हुस्ने अमल कर सका हूँ
नज़्र चन्द अश्क़ मैं कर रहा हूँ
बस यही मेरा है कुल असासा
अलविदा अलविदा माहे रमज़ान

क़ल्ब-ए-‘आशिक़ है अब पारा पारा
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, माह-ए-रमज़ाँ !
कुल्फ़त-ए-हिज्र-ओ-फ़ुर्क़त ने मारा
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, माह-ए-रमज़ाँ !

तेरे आने से दिल ख़ुश हुआ था
और ज़ौक़-ए-‘इबादत बढ़ा था
आह ! अब दिल पे है ग़म का ग़लबा
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, माह-ए-रमज़ाँ !

मस्जिदों में बहार आ गई थी
जौक़-दर-जौक़ आते नमाज़ी
हो गया कम नमाज़ों का जज़्बा
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, माह-ए-रमज़ाँ !

बज़्म-ए-इफ़्तार सजती थी कैसी !
ख़ूब सहरी की रौनक़ भी होती
सब समाँ हो गया सूना सूना
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, माह-ए-रमज़ाँ !

तेरे दीवाने अब रो रहे हैं
मुज़्तरिब सब के सब हो रहे हैं
हाए ! अब वक़्त-ए-रुख़्सत है आया
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, माह-ए-रमज़ाँ !

तेरा ग़म हम को तड़पा रहा है
आतिश-ए-शौक़ भड़का रहा है
फट रहा है तेरे ग़म में सीना
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, माह-ए-रमज़ाँ !

याद रमज़ाँ की तड़पा रही है
आँसूओं की झड़ी लग गई है
कह रहा है ये हर एक क़तरा
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, माह-ए-रमज़ाँ !

हसरता ! माह-ए-रमज़ाँ की रुख़्सत
क़ल्ब-ए-‘उश्शाक़ पर है क़ियामत
कौन देगा उन्हें अब दिलासा
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, माह-ए-रमज़ाँ !

तुम पे लाखों सलाम, माह-ए-ग़ुफ़राँ !
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, माह-ए-रमज़ाँ !
जाओ हाफ़िज़ ख़ुदा अब तुम्हारा
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, माह-ए-रमज़ाँ !

नेकियाँ कुछ न हम कर सके हैं
आह ! ‘इस्याँ में ही दिन कटे हैं
हाए ! ग़फ़्लत में तुझ को गुज़ारा
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, माह-ए-रमज़ाँ !

वासिता तुझ को मीठे नबी का
हश्र में हम को मत भूल जाना
रोज़-ए-महशर हमें बख़्शवाना
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, माह-ए-रमज़ाँ !

जब गुज़र जाएँगे माह ग्यारह
तेरी आमद का फिर शोर होगा
क्या मेरी ज़िंदगी का भरोसा
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, माह-ए-रमज़ाँ !

माह-ए-रमज़ाँ की रंगीं फ़ज़ाओ !
अब्र-ए-रहमत से मम्लू हवाओं !
लो सलाम आख़िरी अब हमारा
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, माह-ए-रमज़ाँ !

कुछ न हुस्न-ए-‘अमल कर सका हूँ
नज़्र चंद अश्क़ मैं कर रहा हूँ
बस यही है मेरा कुल असासा
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, माह-ए-रमज़ाँ !

हाए ! ‘अत्तार-ए-बद-कार काहिल
रह गया ये ‘इबादत से ग़ाफ़िल
इस से ख़ुश हो के होना रवाना
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, माह-ए-रमज़ाँ !

साल-ए-आइंदा, शाह-ए-हरम ! तुम
करना ‘अत्तार पर ये करम तुम
तुम मदीने में रमज़ाँ दिखाना
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, माह-ए-रमज़ाँ !

क़ल्ब-ए-‘आशिक़ है अब पारा पारा
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, आह ! रमज़ाँ
कुल्फ़त-ए-हिज्र-ओ-फ़ुर्क़त ने मारा
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, आह ! रमज़ाँ

तेरे आने से दिल ख़ुश हुआ था
और ज़ौक़-ए-‘इबादत बढ़ा था
आह ! अब दिल पे है ग़म का ग़लबा
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, आह ! रमज़ाँ

मस्जिदों में बहार आ गई थी
जौक़-दर-जौक़ आते नमाज़ी
हो गया कम नमाज़ों का जज़्बा
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, आह ! रमज़ाँ

बज़्म-ए-इफ़्तार सजती थी कैसी !
ख़ूब सहरी की रौनक़ भी होती
सब समाँ हो गया सूना सूना
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, आह ! रमज़ाँ

तेरे दीवाने अब रो रहे हैं
मुज़्तरिब सब के सब हो रहे हैं
हाए ! अब वक़्त-ए-रुख़्सत है आया
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, आह ! रमज़ाँ

तेरा ग़म हम को तड़पा रहा है
आतिश-ए-शौक़ भड़का रहा है
फट रहा है तेरे ग़म में सीना
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, आह ! रमज़ाँ

याद रमज़ाँ की तड़पा रही है
आँसूओं की झड़ी लग गई है
कह रहा है ये हर एक क़तरा
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, आह ! रमज़ाँ

हसरता ! माह-ए-रमज़ाँ की रुख़्सत
क़ल्ब-ए-‘उश्शाक़ पर है क़ियामत
कौन देगा उन्हें अब दिलासा
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, आह ! रमज़ाँ

तुम पे लाखों सलाम, आह ! रमज़ाँ
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, आह ! रमज़ाँ
जाओ हाफ़िज़ ख़ुदा अब तुम्हारा
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, आह ! रमज़ाँ

नेकियाँ कुछ न हम कर सके हैं
आह ! ‘इस्याँ में ही दिन कटे हैं
हाए ! ग़फ़्लत में तुझ को गुज़ारा
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, आह ! रमज़ाँ

वासिता तुझ को मीठे नबी का
हश्र में हम को मत भूल जाना
रोज़-ए-महशर हमें बख़्शवाना
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, आह ! रमज़ाँ

जब गुज़र जाएँगे माह ग्यारह
तेरी आमद का फिर शोर होगा
क्या मेरी ज़िंदगी का भरोसा
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, आह ! रमज़ाँ

माह-ए-रमज़ाँ की रंगीं फ़ज़ाओ !
अब्र-ए-रहमत से मम्लू हवाओं !
लो सलाम आख़िरी अब हमारा
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, आह ! रमज़ाँ

कुछ न हुस्न-ए-‘अमल कर सका हूँ
नज़्र चंद अश्क़ मैं कर रहा हूँ
बस यही है मेरा कुल असासा
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, आह ! रमज़ाँ

हाए ! ‘अत्तार-ए-बद-कार काहिल
रह गया ये ‘इबादत से ग़ाफ़िल
इस से ख़ुश हो के होना रवाना
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, आह ! रमज़ाँ

साल-ए-आइंदा, शाह-ए-हरम ! तुम
करना ‘अत्तार पर ये करम तुम
तुम मदीने में रमज़ाँ दिखाना
अल-वदा’अ, अल-वदा’अ, आह ! रमज़ाँ

शायर:
मुहम्मद इल्यास अत्तार क़ादरी

ना’त-ख़्वाँ:
ओवैस रज़ा क़ादरी
हाफ़िज़ ताहिर क़ादरी
असद रज़ा अत्तारी

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