तस्वीर-ए-सुन्नियत है के चेहरा रज़ा का है
वादी रज़ा की कोह-ए-हिमाला रज़ा का है
जिस सम्त देखिए वो इलाक़ा रज़ा का है
किस की मजाल है जो नज़र भी मिला सके
दरबार-ए-मुस्तफ़ा में ठिकाना रज़ा का है
अल्फ़ाज़ बह रहे हैं दलीलों की धार पर
चलता हुवा क़लम है के धारा रज़ा का है
दस्तार आ रही है ज़मीं पर जो सर उठे
इतना बुलंद आज फरेरा रज़ा का है
छूता है आसमान को मीनार अज़्म का
यानी अटल पहाड़ इरादा रज़ा का है
दरिया फ़साहतों के रवां शाइ’री में हैं
ये सहल-ए-मुम्तन’अ है के लहज़ा रज़ा का है
जो उस ने लिख दिया है सनद है वो दीन में
अहल-ए-क़लम की आबरू नुक़्ता रज़ा का है
अगलोंने भी लिखा है बहुत दीन पर मगर
जो कुछ है इस सदी में वो तन्हा रज़ा का है
इस दौर-ए-पुर-फ़ितन में नज़र ! ख़ुश-अक़ीदगी
सरकार का करम है वसीला रज़ा का है
शायर:
प्रोफ़ेसर जमील नज़र साहिब