कभी उन सा ख़ूब-ओ-यक्ता कोई था, ना है, ना होगा
वो हबीब हैं ख़ुदा के, वो मुहिब हैं किब्रिया के
किसी तौर उन से बाला कोई था, ना है, ना होगा
वो जो बोरिया-नशीं था, जिसे फ़ख्र फ़क़्र पर था
कहीं ऐसा शाह-ए-वाला कोई था, ना है, ना होगा
सहे ज़ुल्म जिस ने फिर भी न किसी को बद-दुआ दी
कभी मेहरबान ऐसा कोई था, ना है, ना होगा
जिसे अपने घर बुलाया उसे बे-तलब नवाज़ा
कहीं मेज़बान ऐसा कोई था, ना है, ना होगा
वो ग़रीब-ओ-बे-नवाँ का, वो यतीम-ओ-बे-कसाँ का
कभी ग़म-गुसार उन सा कोई था, ना है, ना होगा
है मुईं ग़ुलाम जिन का हैं वो बहर-ओ-बर के वाली
दो-जहाँ में ऐसा आक़ा कोई था, ना है, ना होगा
नातख्वां:
क़ारी शाहिद महमूद