मेरे मौला का कोई जवाब नहीं
मेरे आक़ा ला-जवाब, मेरे मौला ला-जवाब
मेरे आक़ा ला-जवाब, मेरे मौला ला-जवाब
ला-जवाब, ला-जवाब, ला-जवाब, ला-जवाब
मेरे आक़ा ला-जवाब, मेरे मौला ला-जवाब
मेरे आक़ा ला-जवाब, मेरे मौला ला-जवाब
क़त्ल करने चले जब नबी को उमर
रास्ते में किसी ने कहा रोक कर
क्यूँ है इतना ख़फ़ा ! जा रहा है किधर ?
जा के अपनी ज़रा बहन की ले ख़बर
हो गई है फ़िदा रब के महबूब पर
दिल तो दिल है ज़ुबाँ से यही कह रही के
मेरे आक़ा ला-जवाब, मेरे मौला ला-जवाब
मेरे आक़ा ला-जवाब, मेरे मौला ला-जवाब
जब सुमैया ने दीन का कलमा पढ़ा
फिर बू-जहल लईन का बरछा लगा
ख़ून इस्लाम में सब से पहला बहा
और सुमैया ने दिल से यही दी सदा
मेरा दिल, मेरी जान तुझ पे क़ुर्बान है
तू सलामत रहे ए रसूल-ए-अमीं के
मेरे आक़ा ला-जवाब, मेरे मौला ला-जवाब
मेरे आक़ा ला-जवाब, मेरे मौला ला-जवाब
शब-ए-मे’राज हक़ का बुलावा मिला
हरम-ए-काबा से अक़्सा तलक तय किया
आसमानों से था सिदरतुल-मुन्तहा
फिर वहाँ से सू-ए-अर्श-ए-आज़म चला
देखीं जब रिफ़अत-ए-अहमद-ए-मुजतबा
तो पुकार उठे ये जिब्रईल के
मेरे आक़ा ला-जवाब, मेरे मौला ला-जवाब
मेरे आक़ा ला-जवाब, मेरे मौला ला-जवाब
नातख्वां:
सज्जाद अल मुबारक और हाजरा ख़ातून