Dil Main Ishqe Nabi Ki Ho Aesi Lagan Naat Lyrics

Dil Main Ishqe Nabi Ki Ho Aesi Lagan Naat Lyrics

 

DIL MAIN ISHQ E NABI KI HO AISI LAGAN NAAT LYRICS
Dil main ishq e Nabi ki ho aisi lagan,
Ruh tarapti rahe dil machalta rahe
Zindagi ka maza hey kay har saans say
Ya Muhammad Muhammad (Sallallaho Alayhi Wasallam) nikalta rahey.

Dil Main Ishq-e-Nabi Kee Ho Aesee Lagan
Ya Muhammad Muhammad mein kehta raha,
Noor kay motiyo ki lare ban gaee,
Ayaton sey milata raha ayatein,

Phir jo dekha to Naat e Nabi ban gaye.
Jo bhi ansoo bahe merey Mehboob kay,
Sab key sab abr e rehmat kay cheentay banay,
Chah gaee raat jab zulf lehra gaee,

Jab tabasum kiya chandani ban gaee.
Yeh to maana kay jannat hai bagh e haseen,
Khoobsoorat hey sab khuld ki sar zameen,
Husn e jannat ko phir jab samayta gaya,

Sarwar e ambiya ki galee ban gaee.
Jab chirah tazkira un kay rukhsaar ka,
Waduha par liya, wal qamar keh dia,
Sooraton kee tilawat bhi hoti rahi,

Naat bhi ho gayi baat bhi ban gayi.
Sab say saim zamanay main mazoor tha,
Sab sey beykas tha beybas tha majboor tha ,
Un ko reham agaya merey halaat par,
Meree azmat meree beybasee ban gaee.

Dil mein ishq e Nabi ki ho aisi lagan,
Rooh tarapti rahay dil machalta rahay,
Zindagi ka maza hai kay har saans say,
Ya Muhammad Muhammad nikalta rahey

 

दिल में इश्क़-ए-नबी की हो ऐसी लगन
रूह तड़पती रहे, दिल मचलता रहे
ज़िंदगी का मज़ा है कि हर साँस से
या मुहम्मद मुहम्मद निकलता रहे

दिल में इश्क़-ए-नबी की हो ऐसी लगन
रूह तड़पती रहे, दिल मचलता रहे

या मुहम्मद मुहम्मद मैं कहता रहा
नूर के मोतियों की लड़ी बन गई
आयतों से मिलाता रहा आयतें
फिर जो देखा तो ना’त-ए-नबी बन गई

दिल में इश्क़-ए-नबी की हो ऐसी लगन
रूह तड़पती रहे, दिल मचलता रहे
ज़िंदगी का मज़ा है कि हर साँस से
या मुहम्मद मुहम्मद निकलता रहे

जो भी आँसू बहे मेरे महबूब के
सब के सब अब्र-ए-रहमत के छींटे बने
छा गई रात जब ज़ुल्फ़ लहरा गई
जब तबस्सुम किया चाँदनी बन गई

दिल में इश्क़-ए-नबी की हो ऐसी लगन
रूह तड़पती रहे, दिल मचलता रहे
ज़िंदगी का मज़ा है कि हर साँस से
या मुहम्मद मुहम्मद निकलता रहे

ये तो माना कि जन्नत है बाग़-ए-हसीं
ख़ूब-सूरत है सब ख़ुल्द की सरज़मीं
हुस्न-ए-जन्नत को फिर जब समेटा गया
सरवर-ए-अम्बिया की गली बन गई

दिल में इश्क़-ए-नबी की हो ऐसी लगन
रूह तड़पती रहे, दिल मचलता रहे
ज़िंदगी का मज़ा है कि हर साँस से
या मुहम्मद मुहम्मद निकलता रहे

जब छिड़ा तज़्किरा हुस्न-ए-सरकार का
वद्दुहा कह दिया, वल-क़मर पढ़ लिया
आयतों की तिलावत भी होती रही
ना’त भी हो गई, बात भी बन गई

दिल में इश्क़-ए-नबी की हो ऐसी लगन
रूह तड़पती रहे, दिल मचलता रहे
ज़िंदगी का मज़ा है कि हर साँस से
या मुहम्मद मुहम्मद निकलता रहे

सब से साइम ज़माने में मा’ज़ूर था
सब से बे-कस था, बे-बस था, मजबूर था
उन को रहम आ गया मेरे हालात पर
मेरी अज़्मत मेरी बे-बसी बन गई

दिल में इश्क़-ए-नबी की हो ऐसी लगन
रूह तड़पती रहे, दिल मचलता रहे
ज़िंदगी का मज़ा है कि हर साँस से
या मुहम्मद मुहम्मद निकलता रहे

शायर:
अल्लामा साइम चिश्ती

नात-ख़्वाँ:
मीलाद रज़ा क़ादरी – फ़रहान अली क़ादरी

Sharing Is Caring:

Leave a Comment